Supreme Court on Flood: देश के कई राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं ने सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान खींचा है. न्यायालय ने पेड़ों की अवैध कटाई को इन आपदाओं का बड़ा कारण मानते हुए पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर को नोटिस जारी किया है.
उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हाल के हफ्तों में भारी बारिश ने तबाही मचाई है. पंजाब में चार दशकों की सबसे भयंकर बाढ़ देखी गई, बाढ़ के कारण यहां 37 लोगों की मौत हो चुकी है. जम्मू-कश्मीर में चार हजार से अधिक लोगों को आश्रय शिविरों में ले जाया गया है.
दिल्ली में यमुना नदी के खतरे के निशान से ऊपर बहने के कारण 8 हजार से ज्यादा लोगों को आश्रय स्थल में रखा गया है. बाढ़ के पानी की वजह से 10 हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पेड़ों की अवैध कटाई इन प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ा रही है. लाइव लॉ के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्रथम दृष्टया, यह साफ है कि पेड़ों की अवैध कटाई हुई है. अदालत ने इन राज्यों को तीन सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए अदालत ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में बड़ी मात्रा में लकड़ी के ब्लॉक नदियों में बहते देखे गए हैं. यह अवैध कटाई का स्पष्ट प्रमाण है.
मुख्य न्यायाधीश ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि पंजाब की तस्वीरें देखें, खेत और गाँव तबाह हो गए हैं. विकास को संतुलित करना होगा. अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस मामले पर गंभीरता से ध्यान देने को कहा. पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ और भूस्खलन ने भारी नुकसान पहुंचाया है. पंजाब में बाढ़ ने कई गाँवों को जलमग्न कर दिया. हिमाचल और उत्तराखंड में भूस्खलन ने सड़कों और घरों को नष्ट कर दिया. जम्मू-कश्मीर में हजारों लोग बेघर हो गए हैं. दिल्ली में यमुना नदी के उफान ने निचले इलाकों में रहने वालों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर नोटिस जारी किया है. अदालत ने साफ कहा कि पर्यावरण की अनदेखी अब बर्दाश्त नहीं होगी. अवैध पेड़ कटाई पर सख्त कार्रवाई की जरूरत है. राज्यों को नोटिस का जवाब देना होगा, जिसमें उनकी नीतियों और कटाई रोकने के उपायों की जानकारी मांगी गई है.