झांसी की पुरानी वोटर लिस्ट में अमिताभ बच्चन का नाम! वायरल दस्तावेज ने खड़ा किया बड़ा सवाल, प्रशासन में हड़कंप

उत्तर प्रदेश में SIR प्रक्रिया को लेकर लगातार विवाद गहराते जा रहे हैं. आए दिन सामने आने वाली गड़बड़ियां न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही हैं बल्कि सिस्टम की खामियों को भी उजागर कर रही हैं.

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Jhansi SIR controversy: उत्तर प्रदेश में SIR प्रक्रिया को लेकर लगातार विवाद गहराते जा रहे हैं. आए दिन सामने आने वाली गड़बड़ियां न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही हैं बल्कि सिस्टम की खामियों को भी उजागर कर रही हैं. इसी कड़ी में झांसी से एक ऐसा अजीब मामला सामने आया जिसने सभी को हैरान कर दिया है. शहर की एक पुरानी SIR लिस्ट में बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन और उनके पिता हरिवंश राय बच्चन का नाम दर्ज पाया गया, जिससे विभाग में हड़कंप मच गया.

मामला तब सामने आया जब ओरछा गेट के बाहर स्थित खुशीपुरा इलाके की वोटर लिस्ट की जांच के दौरान अमिताभ बच्चन का नाम दिखाई दिया. दस्तावेज़ में उनका मकान नंबर 54 बताया गया और उम्र 76 वर्ष दर्ज थी. इतना ही नहीं, लिस्ट के अनुसार बच्चन को वर्ष 2003 में इसी क्षेत्र में वोट डालने वाला मतदाता बताया गया था.

स्थानीय लोगों ने किया साफ इनकार

जब इस जानकारी की पुष्टि के लिए स्थानीय लोगों से बात की गई, तो सभी ने बताया कि उन्होंने अमिताभ बच्चन को सिर्फ फिल्मों में देखा है और इस इलाके में कभी भी बच्चन परिवार का कोई सदस्य नहीं रहा. यह स्पष्ट हो गया कि वोटर लिस्ट में दर्ज यह सूचना पूरी तरह गलत है और प्रशासनिक त्रुटि का गंभीर मामला है.

रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि मकान नंबर 54 से जुड़ा एक दूसरा नाम—सुरेंद्र कुमार पुत्र राजेश कुमार (उम्र 76 वर्ष)—भी उसी पते पर दर्ज था. दोनों नाम क्रमशः 543 और 544 नंबर पर मौजूद थे. एक ही पते पर दो अलग व्यक्तियों के नाम और समान उम्र ने मामले को और संदिग्ध बना दिया.

मकान की जगह मिला मंदिर

जब प्रशासनिक टीम मौके पर पहुंची और तथाकथित मकान नंबर 54 की जांच की गई, तो वहां कोई मकान मौजूद ही नहीं था. उसकी जगह पर एक मंदिर मिला. इस खुलासे ने पूरे मामले को और गंभीर बना दिया. सवाल यह उठा कि जो मकान अस्तित्व में ही नहीं है, उसमें अमिताभ बच्चन का नाम कैसे दर्ज हो गया? इससे SIR प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सीधे सवाल खड़े हो गए हैं.

मामला वायरल होते ही विभाग में हलचल मच गई. अधिकारियों पर जवाबदेही को लेकर दबाव बढ़ गया है. कई वरिष्ठ अधिकारियों से जवाब मांगा जा रहा है कि इतनी बड़ी गलती कैसे हुई और पुराने रिकॉर्ड में इस प्रकार की गड़बड़ी कैसे शामिल हो गई.

सिस्टम की खामियों पर उठा सवाल

यह घटना केवल एक त्रुटि नहीं, बल्कि व्यापक सिस्टम फेलियर का संकेत देती है. यदि एक हाई-प्रोफाइल नाम गलत तरीके से वोटर लिस्ट में शामिल हो सकता है, तो आम नागरिकों के रिकॉर्ड में त्रुटियों की संभावना और भी बढ़ जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह गड़बड़ी सिस्टम की पारदर्शिता, डेटा अपडेट और मॉनिटरिंग की कमजोरी को उजागर करती है.

वर्तमान स्थिति को देखते हुए जांच की मांग तेज हो गई है. प्रशासन पर जोर है कि न सिर्फ इस मामले में बल्कि अन्य क्षेत्रों की SIR और वोटर लिस्ट का भी पुनर्मूल्यांकन किया जाए. झांसी का यह मामला साफ दिखाता है कि चुनावी रिकॉर्ड अपडेट करने की प्रक्रिया में कितना सुधार जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी गंभीर गलतियां दोबारा न हों.

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