Janmashtami: कृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाने की परम्परा है. इसी शुभ दिन ही मथुरा में असुर कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था. जन्माष्टमी के मौके पर घरों में झाकियां पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करके जन्म महोत्सव मनाया जाता है. जहां कृष्ण को मानने वाले कृष्ण के बाल रूप को भव्य श्रृंगार करके रात्रि में 12 बजे कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं. इस वर्ष जन्माष्टमी 6 व 7 दोनों दिन मनाया जा रहा है.
जन्माष्टमी दो दिन होने के कारण गृहस्थ जीवन वाले को 6 सितंबर को जन्माष्टमी का व्रत रखना शुभ फलदायक होगा.
श्रीकृष्ण की पूजा 6 सितंबर को रात के 11.57 – 7 सितंबर प्रात: 12:42 तक मनाया जाएगा. आपको बता दें कि जब भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था, उस समय आधी रात थी. चन्द्रमा का उदय हो चुका था साथ ही उस वक्त रोहिणी नक्षत्र का भी योग था. यही कारण है कि कृष्ण- जन्मोत्सव मनाने के लिए तीनों योगों का होना आवश्यक है.
कृष्ण जन्माष्टमी वाले दिन सूर्योदय से व्रत की शुरूआत की जाती है. अथवा पूजन के उपरांत अगले दिन सूर्योदय के पश्चात ही व्रत का पारण किया जाता है. व्रत के दिन स्नानादि से निवृत होकर व्रत करें. इसके बाद लड्डू गोपाल को झूले पर सुलाएं साथ ही श्रृंगार करें. रात को 12 बजे शंख अथवा घंटी बजाकर कान्हा का जन्म कराते हुए खीरा जरुर काटें. कृष्ण को भोग लगाएं चलीसा का पाठ करके आरती करें.
1- कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:
2- हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे
3- ॐ नमो भगवते श्री गोविन्दाय