Pitru Paksha Shradh 2023: पितृपक्ष में लोग अपने घर में श्राद्ध करने के अलावा कुछ तीर्थ स्थानों पर जाकर भी अपने पितरों का पिंडदान करते हैं. पितृपक्ष के दौरान पवित्र नदियों पर काफी भीड़ रहती है. जहां लोग पितरों का श्राद्ध करते हैं तो चलिए जानते हैं उन स्थानों के बारे में जहां तर्पण श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं.
पितृपक्ष में पूरी श्रद्धा के साथ लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनके प्रति आभार व्यक्त करते है. माना जाता है कि, पितृ पक्ष में पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर पिंडदान , श्राद्ध और तर्पण करने की परंपरा होती है. पितृ पक्ष में पूरे विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वो अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
हिंदू धर्म की मान्यता की मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में के दौरान हमारे पूर्वज किसी ना किसी रूप में हमसे मिलने हमारे घर आते हैं. बहुत से लोग पितृपक्ष में अपने घर पर ही ब्राह्मणों को भोजन करवा कर अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं. लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो कि तीर्थ स्थानों पर जाकर अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं और वहां उनका श्राद्ध करते हैं. तो चलिए उन घाटों के बारे में जानते हैं जहां पिंडदान करने से पितृ बेहद खुश होते हैं.
गया घाट–
गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में बिहार के गया घाट पर श्राद्ध कर्म करना बेहद फलदाई माना जाता है. यह स्थान सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना गया है. पुराणों में यह स्थान मोक्ष की भूमि और मोक्ष स्थली भी कहा गया है. गई है. अगर आप अपने पितरों का श्राद्ध कर्म इस स्थान पर करते हैं तो आपके पितृ बेहद प्रसन्न होंगे. पितृपक्ष के दौरान यहां हर साल विशाल मेला का आयोजन किया जाता है. अपने पितरों का श्राद्ध करने यहां लोग दूर-दूर से आते है और श्राद्ध करते हैं.
ब्रह्मकपाल घाट–
बद्रीनाथ में स्थित ब्रह्मकपाल घाट के बारे में ऐसा कहा गया है कि, यहां किया गया पिंडदान गया से भी 8 गुना अधिक फलदायी होता है. इस स्थान के बारे में ऐसी मान्यता है कि, अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए पूर्वजों का यहां आकर श्राद्ध करने से उसकी आत्मा को तत्काल मुक्ति मिलती है.पुराणों के अनुसार यहां भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. यह स्थान बदरीनाथ धाम से कुछ ही कदम की दूरी पर अलकनंदा के तट पर स्थित है. महाभारत युद्ध में मारे गए परिजनों की मुक्ति के लिए पांडवों ने भी इसी पवित्र स्थल पर पिंडदान किया था.
प्रयागराज घाट–
इसके अलावा गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर पितरों का तर्पण करना भी श्रेष्ठ माना जाता है. प्रयागराज में पितृपक्ष का बहुत बड़ा मेला लगता है. यहां पर दूर-दराज से लोग आकर पिंडदान करते हैं और पितरों के मोक्ष के लिए कामना करते हैं.
हरिद्वार–
उत्तराखंड का सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हरिद्वार भी हैं. यहां भी लोग अपने पूर्वजों के अस्थि विसर्जन के लिए जाते हैं. यहां पर श्राद्ध करने से भी पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है.
राजस्थान पवित्र झील–
राजस्थान का धार्मिक स्थान में एक पुष्कर भी श्राद्ध कर्म के लिए जाना जाता है. यहां पर ब्रह्माजी का एकमात्र विश्व प्रसिद्ध मंदिर है यहां की पवित्र झील के बारे में मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति भगवान विष्णु की नाभि से हुई है. यहां पर 52 घाट हैं जहां पर हर साल पिंडदान करने लोग दूर-दूर से आते हैं.
काशी घाट
भगवान शिव की नगरी काशी के घाट पर भी पितरों का श्राद्ध करना परम पुण्यदायी माना गया है. कहते हैं कि काशी में प्राण त्यागने वालों को यमलोक नहीं जाना पड़ता है. वैसे ही यहां पर श्राद्ध कर्म करने से पूर्वजों की आत्मा को परम शांति की प्राप्ति होती है.