Bihar Elections 2025: बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, लेकिन एनडीए और महागठबंधन दोनों ही सीट बंटवारे के पेंच में उलझे हैं. लोकप्रिय वेब सीरीज 'पंचायत' का एक वायरल डायलॉग, मीटिंग कीजिए, मीटिंग खेलिए, मीटिंग करते रहिए, बिहार की मौजूदा सियासत पर सटीक बैठता है.
दिल्ली-पटना की उड़ानों और अनगिनत बैठकों के बाद भी गठबंधन अपनी रणनीति तय नहीं कर पाए हैं. 6 और 11 नवंबर को होने वाले चुनावों के लिए अब एक महीने से भी कम समय बचा है और नतीजे 14 नवंबर को आएंगे.
महागठबंधन में राजद और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर तनातनी चरम पर है. कांग्रेस ने 70 सीटों की मांग की थी, लेकिन अब 61-63 सीटों पर अड़ी है. राजद इसके लिए तैयार नहीं है, क्योंकि 2020 में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर रहा था. तब 70 सीटों पर लड़ने के बावजूद कांग्रेस केवल 19 सीटें जीत पाई थी. राजद 130 से कम सीटों पर समझौता करने को तैयार नहीं है. सोमवार को स्थिति तब और नाटकीय हो गई, जब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को टिकट दे दिए. उस समय तेजस्वी यादव दिल्ली में कांग्रेस के साथ बातचीत कर रहे थे. इस कदम से कांग्रेस नाराज हो गई.सूत्रों के मुताबिक, तेजस्वी के पटना लौटने पर राजद ने कुछ उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न वापस ले लिए.
महागठबंधन की छोटी सहयोगी पार्टियां भी दबाव बना रही हैं. मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) 40 सीटों की मांग कर रही है, लेकिन उसे अधिकतम 12 सीटें मिल सकती हैं. सहनी ने उपमुख्यमंत्री पद की भी शर्त रखी है. वहीं, भाकपा (माले) ने 2020 में 19 सीटों पर 12 जीत का हवाला देकर 35-40 सीटें मांगी हैं. एनडीए ने सीटों की संख्या तय कर ली है, लेकिन निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर विवाद खत्म नहीं हुआ. भाजपा और जदयू 101-101 सीटों पर लड़ेंगी. चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें मिली हैं, जबकि वह 40 सीटों की मांग कर रही थी. राष्ट्रीय लोक मोर्चा और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को 6-6 सीटें दी गई हैं. टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष साफ दिख रहा है. सोमवार को एनडीए की प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द कर दी गई. जदयू के कई नेताओं ने नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर धरना दिया. सूत्रों के मुताबिक, भाजपा जदयू के कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की योजना से नाराज है.
नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच पुरानी तकरार फिर उभरी है. सोनबरसा और राजगीर सीटों पर दोनों पार्टियां दावा ठोक रही हैं. सोनबरसा जदयू के पास है, और नीतीश अपने करीबी रत्नेश सदा के लिए इसे छोड़ने को तैयार नहीं हैं. चिराग कई अन्य सीटों पर भी दबाव बना रहे हैं. 2020 में चिराग ने अलग चुनाव लड़कर जदयू को भारी नुकसान पहुंचाया था. तब एनडीए मामूली अंतर से बहुमत हासिल कर पाया था. भाजपा इसे ध्यान में रखकर स्थिति को संभालने की कोशिश कर रही है. सीट बंटवारे का यह गतिरोध दोनों गठबंधनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. समय कम है, और प्रचार शुरू करने में देरी हो रही है. अगर जल्द सहमति नहीं बनी, तो दोनों पक्षों को रणनीतिक नुकसान हो सकता है. बिहार की जनता अब यह देख रही है कि क्या ये मीटिंगेंकोई ठोस नतीजा दे पाएंगी, या सिर्फ अलहुआ मीटिंग बनकर रह जाएंगी.