Hathras Stampede: कम पढ़े लिखे लोग ही साकार हरि जैसे बाबाओं के जाल का शिकार होते है. इस हादसे ने सच को उखाड़ कर रख दिया है. मरने वालों की संख्या में 121 तक दर्ज नाम देख लीजिए. इनमें एक भी नाम नहीं, जिन्हें संपन्न माना जाता है. ज्यादातर गरीब परिवारों की महिलाएं है. जिनको लगता है कि अब जिनकी जिंदगी में कोई उम्मीद नहीं बची. अब उन्हें चमत्कार पर ही भरोसा है और यही अंधविश्वास का भरोसा उन्हें मौत तक खींच लाया. यही कारण है कि सत्संग के बाद हुई भगदड़ में मरने वालों में 113 महिलाएं ही है.
सिकंदराराऊ के फुलरई मुगलगढ़ी में सत्संग के बाद मची भगदड़ में मरने वालों की संख्या अब 121 हो गई है. खुद प्रशासन मान चुका है कि यहां एक लाख से अधिक लोग पहुंचे थे. इनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ़ के लोग शामिल थे. 300 से ज्यादा तो बसें ही थीं. आसपास के लोग मोटरसाईकिल या फिर ट्रैक्टर-ट्राली से भी आए थे. खास बात यह है कि इनमें ज्यादातर महिलाएं गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाली है. पढ़ाई लिखाई भी निम्न स्तर की ही थी.
सत्संग में भगदड़ के दौरान मरीं 34 महिलाओं का पोस्टमार्टम हाथरस में किया गया था. ये ललितपुर, कासगंज, आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, गौतमबुद्धनगर, औरैया, उन्नाव और मुरैना की रहने वाली थीं. इनमें 30 महिलाएं ऐसी है जो बेहद ही गरीब परिवारों से थीं. किसी का पति मजदूरी करता है तो किसी का रिक्शा चलाता है. इनमें कई लोग तो ऐसे थे जिनके पास अपने घर की महिलाओं की शव ले जाने तक के पैसे नहीं थे. किसी तरह से व्यवस्था करके शव ले गए. मुरैना के शिवप्रकाश का कहना था कि उनकी चाची की मौत इस हादसे में हो गई थी. एक टेंपो करके शव ले गए थे. लोगों ने किराये के पैसा भी इकट्ठा किए थे. शिवप्रकाश ने बताया कि उनकी चाची पिछले 3 साल से बाबा भोले के सत्संग को सुनती आ रही थीं. वह पढ़ी लिखी नहीं थीं. उनके पास जमीन भी नहीं है और परिवार के सभी लोग मजदूरी करते है.
हाथरस के सिकंदराराऊ के गांव फुलरई मुगलगढ़ी में बाबा के सत्संग में घायल लोगों को अलीगढ़ के अस्पतालों में लाया गया था. यहां 38 लोगों की मौत हुई जिनमें 35 महिलाएं एक पुरुष और दो बच्चे थे. यह सभी लोग प्रदेश के अलग जिलों के रहने वाले थे. इनमें सभी गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाले है. इनमें 23 महिलाएं गांव की थी. इनमें से किसी के पास भी खेती के लिए बड़ी जोत नहीं थी. ज्ञानेश की पत्नी कुसुम की मौत हुई. ज्ञानेश मजदूरी करता है. पांच बीघा जमीन है. यह लोग काफी समय से बाबा से जुड़े है. पढ़े लिखे नहीं है.
सत्संग में भगदड़ के बाद एटा के अस्पताल पहुंचाए गए लोगों में 27 लोगों की मौत हुई थी. इनमें भी अलग -अलग जिलों और राज्यों की 26 महिलाएं थी. यह महिलांए भोले बाबा का सत्संग सुनने के लिए पहुंची थीं. यह महिलाए बाबा का सत्संग जहां भी होता है, वहां पहुंच जाती है. अपने लिए बड़ी-बड़ी मन्नत लेकर जाती है. कोई अपने बीमार पति के लिए आशीर्वाद लेने जाती है तो कोई बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए. यह कई दिनों तक सत्संग वाले स्थान पर रहती है.
पोस्टमार्टम हाउस पर बरेली, बुंलेदशहर, बदायूं, अकराबाद और कासगंज के परिवार के लोग जब अपनों के शवों को लेने पहुंचे तो उनका कहना था कि बाबा का सत्संग सुनने के लिए किराया और खर्च का पैसा जुटाने के लिए मजदूरी का काम करती है. जब कुछ पैसे इकट्ठा हो जाता है तो उसे सत्संग का पैसा निकालकर रख देती हैं. जब कहीं पर भोले बाबा का सत्संग होता है तो वहां जाती है. सुनील कुमार ने बताया कि उनकी पत्नी सुनीता गांव की महिलाओं के साथ सत्संग सुनने जाती थी. विपिन कुमार मजदूरी करता है. विपिन का कहना था कि गांव की महिलाओं का एक पूरा ग्रुप है. ये सभी एक साथ निकल जाती थीं. सत्संग में भगदड़ के दौरान उनकी मौत हो गई.