RBI Monetary Policy: भारतीय रिज़र्व बैंक ने बुधवार को अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को 5.50 को बरकरार रखने का फैसला किया है. यह निर्णय आर्थिक स्थिरता और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए लिया गया.
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने तीन दिनों तक चली बैठक के बाद यह निर्णय लिया. समिति में आरबीआई के तीन अधिकारी संजय मल्होत्रा, पूनम गुप्ता (डिप्टी गवर्नर), और राजीव रंजन (कार्यकारी निदेशक) तथा तीन बाहरी सदस्य नागेश कुमार, सौगत भट्टाचार्य, और राम सिंह शामिल थे. इस बैठक में आर्थिक स्थिति और मुद्रास्फीति के रुझानों पर गहन चर्चा हुई.
इस साल की शुरुआत में आरबीआई ने रेपो दर में बदलाव किए थे. पहली बार फरवरी और फिर अप्रैल में 25-25 आधार अंकों की कटौती की गई थी, वहीं जून में 50 आधार अंकों की कटौती की गई थी. इन कटौतियों का मकसद अर्थव्यवस्था को गति देना और उद्योगों को सहायता प्रदान करना था. हालांकि, इस बार दरों को स्थिर रखने का फैसला लिया गया, क्योंकि अर्थव्यवस्था अब स्थिरता की ओर बढ़ रही है. सरकार ने आरबीआई को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत के आसपास, 2 प्रतिशत के मार्जिन के साथ, बनाए रखने की जिम्मेदारी दी है. अच्छी खबर यह है कि फरवरी 2025 से मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है. यह दर्शाता है कि आरबीआई की नीतियां प्रभावी रही हैं.
आरबीआई का यह कदम दर्शाता है कि केंद्रीय बैंक सतर्क रुख अपनाए हुए है. विशेषज्ञों का मानना है कि दरों को स्थिर रखने से बैंकों के ऋण और जमा दरों पर कोई तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा. इससे आम लोगों और उद्योगों को स्थिरता मिलेगी. साथ ही, यह कदम वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को देखते हुए भी लिया गया है. मौद्रिक नीति समिति ने संकेत दिए हैं कि भविष्य में आर्थिक आंकड़ों और वैश्विक परिस्थितियों के आधार पर नीतिगत फैसले लिए जाएंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में रहती है और आर्थिक विकास की गति बनी रहती है, तो भविष्य में दरों में और बदलाव संभव हैं.
आरबीआई का यह निर्णय अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. रेपो दर को स्थिर रखने से बाजार में विश्वास बना रहेगा.