Charlie Kirk murder: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया H-1B वीजा सुधार ने वैश्विक बहस को नई ऊंचाई दे दी है. कंपनियों को अब विदेशी विशेषज्ञों को हायर करने के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख डॉलर (लगभग 84 लाख रुपये) की मोटी फीस चुकानी पड़ेगी. यह फैसला ट्रंप प्रशासन की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का हिस्सा है, जो स्थानीय नौकरियों को प्राथमिकता देने पर केंद्रित है.
लेकिन इस बीच ट्रंप के परम समर्थक और कंजर्वेटिव प्रभावशाली चार्ली किर्क का एक पुराना ट्वीट फिर सुर्खियों में है, जो उनकी हत्या से महज छह दिन पहले का है. किर्क, जिनकी 10 सितंबर को यूटा विश्वविद्यालय में गोली मारकर हत्या कर दी गई, ने भारत से आने वाले वीजा धारकों पर तीखा प्रहार किया था.
'भारत से और वीजा की जरूरत नहीं'
चार्ली किर्क, टर्निंग पॉइंट यूएसए के संस्थापक और ट्रंप के सबसे नजदीकी सहयोगियों में शुमार, ने 2 सितंबर को एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट किया था. उन्होंने लिखा, "अमेरिका को भारत से लोगों के लिए और वीजा की जरूरत नहीं है. शायद किसी भी कानूनी आप्रवासन ने अमेरिकी श्रमिकों को इतना विस्थापित नहीं किया जितना भारतीयों ने किया. बस अब बहुत हो गया. हम भरे हुए हैं. आखिरकार अपने लोगों को प्राथमिकता दो."
यह बयान फॉक्स न्यूज होस्ट लॉरा इंग्राहम के ट्वीट का जवाब था, जिन्होंने भारत के साथ संभावित व्यापार सौदे पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इससे अमेरिका को अतिरिक्त वीजा देने पड़ सकते हैं. किर्क का यह पोस्ट H-1B कार्यक्रम के आलोचकों के बीच तूफान ला दिया, जहां वे इसे अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरा मानते हैं.
अमेरिकी टेक जगत का सहारा
किर्क की हत्या के बाद यह ट्वीट और वायरल हो गया. 10 सितंबर को यूटा वैली यूनिवर्सिटी के एक इवेंट में, जहां वे गन हिंसा पर चर्चा कर रहे थे, अज्ञात हमलावर ने उन पर गोली चला दी. पुलिस ने इसे 'राजनीतिक हत्या' करार दिया है, और संदिग्ध टायलर रॉबिन्सन को गिरफ्तार कर लिया गया. ट्रंप ने किर्क को 'सत्य और स्वतंत्रता का शहीद' कहा, जबकि उनके समर्थकों ने इसे 'बाएंपंथी हिंसा' का नतीजा बताया.
H-1B वीजा अमेरिकी कंपनियों को विशेषज्ञ विदेशी पेशेवरों को तीन साल (विस्तार योग्य छह साल तक) के लिए हायर करने की अनुमति देता है. इसमें न्यूनतम स्नातक डिग्री जरूरी है, और यह आईटी, इंजीनियरिंग व हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में लोकप्रिय है. हर साल 85,000 वीजा जारी होते हैं, जिनमें से 70% से अधिक भारत जाते हैं. गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज कंपनियां इससे लाभान्वित होती हैं, लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह अमेरिकी युवाओं की नौकरियों छीनता है.
ट्रंप का नया ऐलान
19 सितंबर को ट्रंप ने व्हाइट हाउस में प्रोजेकलेशन साइन किया, जिसमें H-1B के लिए सालाना 1 लाख डॉलर फीस अनिवार्य की गई. उन्होंने पत्रकारों से कहा, "हमें शानदार लोग चाहिए, लेकिन अब कंपनियों को इसकी कीमत चुकानी होगी." यह कदम मजदूरी स्तरों को ऊंचा करने और स्थानीय भर्ती को बढ़ावा देने का प्रयास है. ट्रंप ने साथ ही 'गोल्ड कार्ड' वीजा लॉन्च किया, जो 10 लाख डॉलर देकर स्थायी निवास देगा.
यह नीति भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए गंभीर चुनौती है, जो अमेरिका में लाखों नौकरियां संभालते हैं. अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल के अनुसार, H-1B धारक अरबों डॉलर टैक्स देते हैं और अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं. लेकिन ट्रंप समर्थक जैसे किर्क इसे 'विस्थापन' मानते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत-चीन संबंधों पर असर पड़ेगा, और कनाडा-ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को फायदा हो सकता है.