H-1B वीजा फीस पर ट्रंप प्रशासन घिरा, 20 अमेरिकी राज्यों ने दायर किया मुकदमा

अमेरिका में H-1B वीज़ा नीति को लेकर बड़ा कानूनी विवाद खड़ा हो गया है. देश के 20 अमेरिकी राज्यों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. मामला नए H-1B वीज़ा आवेदनों पर लगाई गई $100,000 की भारी फीस से जुड़ा है.

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Courtesy: X (@IanJaeger29)

अमेरिका में H-1B वीज़ा नीति को लेकर बड़ा कानूनी विवाद खड़ा हो गया है. देश के 20 अमेरिकी राज्यों ने ट्रंप प्रशासन के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. मामला नए H-1B वीज़ा आवेदनों पर लगाई गई $100,000 की भारी फीस से जुड़ा है.

राज्यों का आरोप है कि यह फैसला गैर-कानूनी है और इससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अन्य ज़रूरी सार्वजनिक सेवाएं बुरी तरह प्रभावित होंगी. इस मुकदमे की अगुवाई कैलिफ़ोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा कर रहे हैं. उनके अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह फैसला लिया है.

ट्रंप का फैसला अनावश्यक बोझ

रॉब बोंटा ने कहा कि इतनी ज़्यादा फीस लगाने का प्रशासन के पास कोई वैधानिक अधिकार नहीं था. उनके मुताबिक, राष्ट्रपति ट्रंप की गैर-कानूनी $100,000 H-1B वीज़ा फीस सार्वजनिक नियोक्ताओं और ज़रूरी सेवाओं के प्रदाताओं पर बेवजह का वित्तीय बोझ डालती है. इससे पहले से मौजूद श्रम संकट और गहरा होगा. राज्यों का कहना है कि इस फैसले से स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों और रिसर्च संस्थानों को विदेशी कुशल कर्मचारियों को नियुक्त करना मुश्किल हो जाएगा.

कब और कैसे लागू हुई नई फीस

डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने यह नई फीस सितंबर 2025 में लागू की थी. यह नियम 21 सितंबर 2025 के बाद दायर किए गए सभी नए H-1B आवेदनों पर लागू होता है. नीति के तहत DHS सेक्रेटरी को यह तय करने का अधिकार दिया गया कि कौन से आवेदन इस फीस के दायरे में आएंगे और किन्हें छूट दी जाएगी. राज्यों का आरोप है कि इस अधिकार का इस्तेमाल मनमाने तरीके से किया गया है, जिससे सार्वजनिक संस्थानों पर सीधा असर पड़ा है.

कौन-कौन से राज्य शामिल

इस मुकदमे में कैलिफ़ोर्निया और मैसाचुसेट्स के साथ एरिज़ोना, कोलोराडो, कनेक्टिकट, डेलावेयर, हवाई, इलिनोइस, मैरीलैंड, मिशिगन, मिनेसोटा, नेवाडा, नॉर्थ कैरोलिना, न्यू जर्सी, न्यूयॉर्क, ओरेगन, रोड आइलैंड, वर्मोंट, वाशिंगटन और विस्कॉन्सिन शामिल हैं.

राज्यों का कहना है कि H-1B प्रोग्राम टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और रिसर्च जैसे क्षेत्रों के लिए जीवनरेखा है. नई फीस इस टैलेंट तक पहुंच को खतरे में डालती है, जिससे सार्वजनिक सेवाएं और आर्थिक विकास दोनों प्रभावित होंगे.

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