Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद BJP पर राहुल गांधी ने साधा निशान, कहा -'चुनावी फायदे के लिए...

Bilkis Bano Case: जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं था. गैंगरेप और हत्या के यह सभी दोषी 15 वर्ष का कारावास काटने के बाद अगस्त 2022 में रिहा हुए थे.

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हाइलाइट्स

  • : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद BJP पर राहुल गांधी ने साधा निशान
  • कहा -'चुनावी फायदे के लिए न्याय की हत्या' की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है.

Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट ने आज (8 जनवरी) बिलकिस बनो केस में अहम फैसला सुनाया है. इस मामले से जुड़े 11 दोषियों की रिहाई से जुड़े गुजरात सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं था. गैंगरेप और हत्या के यह सभी दोषी 15 वर्ष का कारावास काटने के बाद अगस्त 2022 में रिहा हुए थे. इस बीच कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस  नेता राहुल गांधी की प्रतक्रिया सामने आई है. 

कांग्रेस  नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,  "चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है. आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर देश को बता दिया कि ‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन है. बिलकिस बानो का अथक संघर्ष, अहंकारी भाजपा सरकार के विरुद्ध न्याय की जीत का प्रतीक है". 

 सुनवाई के दौरान क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?

बिलकिस बानो केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 11 दोषियों को दी गई छूट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि गुजरात सरकार के पास सजा में छूट देने का कोई अधिकार नहीं था.  वहीं, SC ने बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना. याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 13 मई 2022 के जिस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को रिहाई पर विचार के लिए कहा था, वह दोषियों ने भौतिक तथ्यों को दबाकर और भ्रामक तथ्य बनाकर हासिल किया था. 

जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि अपराधियों को सजा इसलिए दी जाती है, ताकि भविष्य में अपराध रुकें. जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है. लेकिन पीड़िता की तकलीफ का भी एहसास होना चाहिए. SC ने कहा, हमने कानूनी लिहाज से मामले को परखा है. पीड़िता की याचिका को हमने सुनवाई योग्य माना है. इसी मामले में जो जनहित याचिकाएं दाखिल हुई हैं, हम उनके सुनवाई योग्य होने या न होने पर टिप्पणी नहीं कर रहे. 

गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट की फटकार 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जिस कोर्ट में मुकदमा चला था, रिहाई पर फैसले से पहले गुजरात सरकार को उसकी राय लेनी चाहिए थी. SC ने कहा, जिस राज्य में आरोपियों को सजा मिली, उसे ही रिहाई पर फैसला लेना चाहिए था. दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी. इस आधार पर रिहाई का आदेश निरस्त हो जाता है.  कोर्ट ने कहा, यह एक ऐसा मामला है जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल छूट देकर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया था. 

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हमारा मानना ​​है कि इन दोषियों को स्वतंत्रता से वंचित करना उचित है. एक बार उन्हें दोषी ठहराए जाने और जेल में डाल दिए जाने के बाद उन्होंने अपनी स्वतंत्रता का अधिकार खो दिया है. साथ ही, यदि वे दोबारा सजा में छूट चाहते हैं तो यह जरूरी है कि उन्हें जेल में रहना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने सभी 11 दोषियों को 2 हफ्ते में सरेंडर करने के लिए कहा है.

क्या है पूरा मामला?

गुजरात के 2002 में हुए दंगों के दौरान दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली बिलकिस बनो अपने परिवार के 16 लोगों के साथ भागकर पास के ही एक गांव छापरवाड के खेतों में छिप गई थी.इस दौरान 3 मार्च 2002 को वहां 20 से अधिक दंगाइयों  ने धाबा बोल दिया था. वहीं  गर्भवती बिलकिस बनो समेत कुछ महिलाओं के साथ वहां दुष्कर्म किया गया था और बिलकिस की 3 साल की बेटी समेत 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था.