Punjab-Haryana Stubble Burning: पर्यावरण मंत्रालय ने कहा- पराली जलाने के मामले में पंजाब-हरियाणा में आयी कमी

Punjab-Haryana Stubble Burning: केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, इस साल पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की तुलना में कमी दर्ज़ की गयी है.

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Punjab-Haryana Stubble Burning: पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना एक बड़ी समस्या है. जिससे दिल्ली-एनसीआर में प्रदुषण का स्तर काफी खराब होता है. राज्य सरकार, केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट की ओर इसे रोकने के लिए तमाम प्रयास किये जा रहे हैं. इसी बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से एक ऐसी रिपोर्ट आयी है जिससे ये लगता है कि शायद सरकारों के प्रयास अब रंग लाने लगे हैं. दरअसल पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है कि दोनों राज्यों में इस साल पराली जलाने की घटनाओं में कमी आयी है. रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने के मामले पिछले साल की तुलना में इस साल क्रमश 27 फीसदी और 37 फीसदी घटे हैं.

आंकड़ों के अनुसार, धीरे-धीरे आ रही है कमी 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, साल 2020 में पंजाब में पराली जलाने के कुल 83,002 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि 2021 में पराली जलाने के मामले घटकर 71,304, साल 2022 में 49,922 और इस साल घटकर 36,663 मामले सामने आये हैं . रिपोर्ट्स के मुताबिक, पंजाब में  पिछले साल की तुलना में इस साल खेतों में पराली जलाने के मामलों में 27 फीसदी की कमी आई है.

वही अगर हरियाणा की बात करें तो साल 2020 में पराली जलाने के कुल 4,202 मामले दर्ज़ किये गए थे. जबकि साल 2021 में 6,987 मामले, 2022 में 3,661 मामले और इस साल 2,303 मामले सामने आये हैं. हरियाणा में पराली जलाने की घटना में पिछले साल की तुलना में इस साल करीब 37 फीसदी की कमी दर्ज़ की गयी है. 

पराली पर खूब हुई राजनीती 

जैसे-जैसे दिल्ली के आसमान में प्रदुषण बढ़ता गया, वैसे ही देश में राजनीती भी बढ़ती गयी. दिल्ली सरकार दिल्ली में हो रहे प्रदुषण के लिए हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा रही थी तो वही केंद्र सरकार पंजाब के किसानों को इसका कसूरवार ठहरा रही थी. इसके बाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तछेप किया और पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी. सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद पंजाब और हरियाणा सरकार ने  पराली जलाने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई के आदेश दिए गए. हालाँकि अब पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के बाद लग रहा है कि सरकार और कोर्ट के ये प्रयास कुछ हद तक सफल हुए है. हालाँकि दिल्ली में प्रदुषण का स्तर अभी भी खतरनाक ही है.