भारत और अमेरिका ने साइबर अपराधों की जांच में सहयोग बढ़ाने के लिए किया समझौता

भारत और अमेरिका ने साइबर अपराध जांच में सहयोग बढ़ाने के लिए कल वाशिंगटन डीसी में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इस समझौता ज्ञापन पर अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा और कार्यवाहक अमेरिकी उप सचिव होमलैंड सुरक्षा क्रिस्टी कैनेगैलो ने हस्ताक्षर किए.

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Courtesy: social media

भारत और अमेरिका ने साइबर अपराध जांच में सहयोग बढ़ाने के लिए कल वाशिंगटन डीसी में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. इस समझौता ज्ञापन पर अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा और कार्यवाहक अमेरिकी उप सचिव होमलैंड सुरक्षा क्रिस्टी कैनेगैलो ने हस्ताक्षर किए.

विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शनिवार को घोषणा की कि भारत और अमेरिका ने आपराधिक जांच में साइबर खतरे की खुफिया जानकारी और डिजिटल फोरेंसिक पर सहयोग और सूचना साझा करने को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है.

विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत की ओर से भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (आई4सी), गृह मंत्रालय (एमएचए) समझौता ज्ञापन के निष्पादन के लिए जिम्मेदार है. अमेरिका की ओर से यह होमलैंड सुरक्षा विभाग (डीएचएस) और इसकी घटक एजेंसियां अमेरिकी आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) और होमलैंड सुरक्षा जांच साइबर अपराध केंद्र (सी3) हैं.

समझौता ज्ञापन दोनों देशों की संबंधित एजेंसियों को आपराधिक जांच में साइबर खतरे की खुफिया जानकारी और डिजिटल फोरेंसिक के उपयोग के संबंध में सहयोग और प्रशिक्षण के स्तर को बढ़ाने की अनुमति देता है.

साइबर अपराध का भारत और अमेरिका के सामने आने वाली आम सुरक्षा चुनौतियों से गहरा संबंध है, जैसे आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद, आतंकी वित्तपोषण, मादक पदार्थों की तस्करी, संगठित अपराध, मानव तस्करी, अवैध प्रवास, धनशोधन और परिवहन सुरक्षा. साइबर अपराध जांच पर समझौता ज्ञापन हमारी व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के हिस्से के रूप में भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग को और मजबूत करने में सक्षम बनाएगा.

साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की वर्तमान चिंताएँ

हाल ही में जारी एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारत में अभी भी साइबर सुरक्षा को संवेदनशील मुद्दा मानने की बजाय बंद कमरे से संचालित होने वाली एक व्यवस्था ही माना जाता है. दरअसल, देश में साइबर सुरक्षा को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के कार्य का ही एक हिस्सा मानते हुए इसकी चुनौतियों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है.

इस रिपोर्ट के मुताबिक, 75 फीसदी भारतीय उपक्रमों ने स्वीकार किया है कि उनके साइबर कामकाज उनकी आवश्यकता के अनुरूप नहीं हैं, जबकि 38 प्रतिशत ने कहा है कि उनका निदेशक-मंडल साइबर हमले के जोखिमों के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं रखता.

गौरतलब है कि एक व्यावसायिक फर्म 'ईवाई' ने 'ए पाथ टू सिविलियन रेजिलिएंस' नामक रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया है कि अप्रचलित और परंपरागत डाटाबेस साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में मुख्य चिंता है. रिपोर्ट के अनुसार, दूसरी प्रमुख समस्या लापरवाह और गैर-प्रशिक्षित कर्मी हैं.

रिपोर्ट में इस बात पर भी बल दिया गया है कि हमें अपनी प्रणाली को और अधिक क्षमतावान बनाने की आवश्यकता है क्योंकि कुछ भी 100 फीसदी सुरक्षित नहीं है. अतः हमें साइबर सुरक्षा के अपने आधारभूत ढाँचे को और विकसित करना होगा.

(इस खबर को भारतवर्ष न्यूज की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)

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