International: क्या है न्यूक्लियर विंटर थ्योरी? परमाणु जंग अगर छिड़ी तो होगी तबाही

International: अमेरिका ने साल 1945 में हिरोशिमा पर परमाणु बम फेका था. इसका क्या असर रहा लोगों ने देखा था, जहां 80 हजार लोग मिनटों में मारे गए थे. वहीं कई लोग जहां थे वही भाप बनकर उड़ गए. वो साल ऐसा था जब एक साथ रेडिएशन के कारण 1.40 लाख लोगों की मौत हो […]

Date Updated
फॉलो करें:

International: अमेरिका ने साल 1945 में हिरोशिमा पर परमाणु बम फेका था. इसका क्या असर रहा लोगों ने देखा था, जहां 80 हजार लोग मिनटों में मारे गए थे. वहीं कई लोग जहां थे वही भाप बनकर उड़ गए. वो साल ऐसा था जब एक साथ रेडिएशन के कारण 1.40 लाख लोगों की मौत हो गई थी. जिसके बाद परमाणु बम को बनाने वाले ओपनहाइमर ने इसकी टेस्टिंग के उपरांत कहा था, कि धमाका उनकी उम्मीद से 50 गुना अधिक हुआ था. जबकि वैज्ञानिकों के मुकाबिक अगर परमाणु बम आज के वक्त में किसी भी देश में गिरी तो पिछली बार की तुलना में कई गुना अधिक तबाही मचा सकता है. वैज्ञानिकों ने क्लाइमेट चेंज को इस बड़ी तबाही का कारण बताया है.

न्यूक्लियर विंटर

बता दें कि अभी के इकलौते परमाणु हमले के प्रभाव को लेकर जॉन बिर्क्स और साइंटिस्ट पॉल क्रुटजेन ने हमले के नजदीक 40 साल उपरांत 1982 में बताया कि अगर न्यूक्लियर वॉर की शुरूआत होती है तो, इसके कारण धुएं का एक ऐसा बादल बन जाएगा कि जिसकी वजह से सूर्य से आने वाली किरणें रुक जाएगी. पृथ्वी पर अगर धूप नहीं पड़ेगी तो तापमान बढ़ जाएगा. ये जो पूरी घटना है न्यूक्लियर विंटर बोली जाएगी. साइंटिस्ट ने बताया कि इससे फसलें एवं सिविलाइजेशन बर्बाद हो जाएगी.

अंधकार व भुखमरी का खतरा

आपको बता दें कि जिस वक्त हिरोशिमा पर परमाणु हमला हुआ था, उस दरमियान सोवियत संघ और अमेरिका वैज्ञानिकों ने बताया कि परमाणु जंग से प्रभावित हुए क्षेत्र जंगल के समान क्षेत्र को जलाने की तुलना में अधिक धुआं एवं धूल पैदा करेगा. इसके धुएं से सूर्य की किरणें रुक जाएगी. पृथ्वी सूखी, अंधकार एवं ठंडी पड़ जाएगी.

क्लाइमेट मॉडल

जानकारी दें कि 40 वर्ष में क्लाइमेट मॉडल बदल गए हैं. इसके अनुसार अभी के टाईम में न्यूक्लियर वॉर छिड़ जाती है तो , 40 वर्ष पूर्व हुए नुकसान से कई ज्यादा बर्बादी हो सकती है. साइंस अलर्ट के अनुसार अमेरिका, रूस के मध्य परमाणु जंग छिड़ती है तो न्यूक्लियर विंटर के आने के साथ समुद्र का तापमान भी गिर जाएगा, मतलब कि समुद्र इतनी ठंडी हो जाएगी कि दुनिया न्यूक्लियर आइस ऐज बन जाएगा. जिसका असर हजारों साल तक रह जाएगा.