Organ Donation: भारत में लोग अक्सर अंगदान को मृत्यु के बाद की प्रक्रिया मानते हैं. लेकिन जीवित अंगदान एक नया और आशाजनक विकल्प है. इसमें स्वस्थ व्यक्ति अपनी किडनी या लिवर का हिस्सा दान कर सकता है. यह हजारों मरीजों के लिए जीवन रक्षक साबित हो रहा है.
डॉक्टर बताते हैं कि लोगों को लगता है कि अंगदान केवल मृत्यु के बाद होता है. यह सच नहीं है. स्वस्थ व्यक्ति बिना अपनी सेहत को नुकसान पहुंचाए किडनी या लिवर का हिस्सा दान कर सकता है. दान के बाद बचा हुआ अंग सामान्य जीवन के लिए पर्याप्त होता है. दाता कुछ हफ्तों में सामान्य दिनचर्या में लौट आते हैं.
भारत में अंगदान को मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम (THOTA) नियंत्रित करता है. अधिकारी बताते हैं कि कानून के तहत दाता की उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए. निकट संबंधी जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे या जीवनसाथी आसानी से अंग दान कर सकते हैं. गैर-रिश्तेदारों को दान के लिए प्राधिकरण समिति की मंजूरी जरूरी है. यह तस्करी और बिक्री को रोकता है. THOTA में दान की अदला-बदली का भी प्रावधान है. मित्तल बताते हैं कि अगर दाता और प्राप्तकर्ता जैविक रूप से अनुकूल नहीं हैं, तो दो दाता आपस में अंगों की अदला-बदली कर सकते हैं. यह प्रक्रिया पूर्व अनुमोदन के साथ एक साथ की जाती है. यह मरीजों को नया जीवन देता है.
गुर्दा सबसे ज्यादा दान किया जाने वाला अंग है. लिवर का हिस्सा भी दान किया जा सकता है. लिवर में पुनर्जनन की क्षमता होती है, जो दाता और प्राप्तकर्ता दोनों में फिर से विकसित हो सकता है. मित्तल कहते हैं कि कानून सुनिश्चित करता है कि दाता का स्वास्थ्य प्रभावित न हो. सांस्कृतिक झिझक और जागरूकता की कमी अभी भी बाधाएं हैं. डॉक्टर कहते हैं कि जीवित अंगदान मरीजों को बेहतर जीवन देता है. हमें मिथकों को तोड़ना होगा. लोगों को इसे साहस और करुणा का कार्य समझने की जरूरत है. जीवित अंगदान सिर्फ चिकित्सा प्रक्रिया नहीं है. यह प्रेम और सहानुभूति का प्रतीक है. यह एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को जीवन का उपहार देने का कार्य है. जागरूकता बढ़ाकर और मिथकों को दूर करके हम इस नेक काम को प्रोत्साहित कर सकते हैं.