Mahua Moitra: बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भारत के चुनाव आयोग के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान यह मामला मतदाता सूची की सटीकता और मतदान के अधिकार को लेकर गंभीर सवाल उठा रहा है.
महुआ मोइत्रा ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि ईसीआई के आदेश पर तुरंत रोक लगाई जाए. उन्होंने आयोग को अन्य राज्यों में ऐसा कोई आदेश जारी करने से रोकने की भी अपील की है. मोइत्रा का दावा है कि यह आदेश मनमाना और असंवैधानिक है. उनके अनुसार, यह गरीब, महिलाओं और प्रवासी मतदाताओं को मतदान प्रक्रिया से बाहर कर सकता है. इससे लाखों लोग अपने वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं.
एनजीओ एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने भी इससे पहले आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था.एनजीओ ने इसके पीछे का कारण बताते हुए यह कहा था कि आदेश संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है. साथ ही, यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए के खिलाफ है.
प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले में कहा कि चुनाव आयोग का आदेश मनमाना है. यह बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है. उन्होंने बताया कि दस्तावेजीकरण की सख्त शर्तें और कम समय सीमा के कारण कई वास्तविक वोटरों के नाम लिस्ट से हट सकते हैं. इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को नुकसान पहुंचेगा.
चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में einstufen मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेश दिए थे. इसका मकसद अपात्र नामों को हटाना और केवल पात्र नागरिकों को शामिल करना है. आयोग का कहना है कि तेजी से बढ़ता शहरीकरण, पलायन, नए युवा मतदाता, मृत्यु की गलत जानकारी और अवैध प्रवासियों के नाम शामिल होने के कारण यह कदम जरूरी है.
आयोग ने यह साफ किया है कि इस प्रक्रिया से संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के प्रावधानों का पालन किाय जाएगा. बूथ स्तर के अधिकारी घर-घर जाकर मतदाता सत्यापन कर रहे हैं. इसका उद्देश्य मतदाता सूची की सटीकता और विश्वसनीयता बनाए रखना है. बिहार में आखिरी बार 2003 में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया था. इस बार का पुनरीक्षण इसलिए भी अहम है क्योंकि राज्य में जल्द ही चुनाव होने हैं. हालांकि, इस प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं. मोइत्रा और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और समावेशी होनी चाहिए, ताकि कोई भी पात्र मतदाता वोट देने से वंचित न रहे.