बूथ के डेटा को सार्वजनिक करने के मामले में EC ने SC के सामने रखी ये बात

लोकसभा चुनाव में पांच चरणों का चुनाव हो गया हैं. दो चरणों में चुनाव होने अभी बाकी है. वहीं, अब चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक हलफनामा दायर कर साफ कर दिया है कि हरेक बूथ पर डाले गए वोटों का डेटा सार्वजनिक करने का कोई कानूनी आधार नहीं है.

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लोकसभा चुनाव में पांच चरणों का चुनाव हो गया हैं. दो चरणों में चुनाव होने अभी बाकी है. वहीं, अब चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक हलफनामा दायर कर साफ कर दिया है कि हरेक बूथ पर डाले गए वोटों का डेटा सार्वजनिक करने का कोई कानूनी आधार नहीं है. इस हल्फनामे में कहा गया है कि ऐसा करने से मतदाता भ्रमित होंगे. चुनाव आयोग का कहना है कि फॉर्म 17C (प्रत्येक मतदान केंद्र में डाले गए वोट) के आधार पर मतदाताओं का वोटिंग डेटा का खुलासा मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा करेगा क्योंकि उसमें डाक मत पत्रों की गिनती भी शामिल होगी.

हलफनामे में कहा गया है, "किसी भी चुनावी मुकाबले में जीत का अंतर बहुत कम हो सकता है. ऐसे मामलों में फॉर्म 17सी को सार्वजनिक करने से मतदाताओं के मन में कुल डाले गए मतों के संबंध में भ्रम पैदा हो सकता है, क्योंकि बाद वाले आंकड़े में फॉर्म 17सी के अनुसार डाले गए मतों की संख्या के साथ-साथ डाक मतपत्रों के माध्यम से प्राप्त मतों की संख्या भी शामिल होगी. हालांकि, इस तरह के अंतर को मतदाता आसानी से नहीं समझ सकते हैं और प्रेरित हितों वाले लोग इसका इस्तेमाल पूरी चुनावी प्रक्रिया पर संदेह करने के लिए कर सकते हैं. जिससे पहले से ही चल रही चुनावी मशीनरी में अराजकता पैदा हो सकती है. "

हलफनामा एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के एक आवेदन का विरोध करते हुए दायर किया गया था, जिसमें मतदान के 48 घंटों के भीतर लोकसभा चुनाव 2024 में डाले गए वोटों की संख्या सहित सभी मतदान केंद्रों पर मतदाता मतदान के अंतिम प्रमाणित डेटा का खुलासा करने की मांग की गई थी. ईसीआई ने शीर्ष अदालत के हालिया ईवीएम फैसले में एडीआर के खिलाफ पारित सख्तियों पर भरोसा किया , और कहा कि सुनवाई के कई चरणों के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा किए गए ट्वीट और सोशल मीडिया पोस्ट सहित सार्वजनिक संदेश की शैली, भाषा, डिजाइन सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मामलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए.