Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग वाली याचिका पर आज यानी गुरुवार को सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने एक तरह से इस मांग का पक्ष रखते हुए कहा कि निर्णय लेते समय जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अदालत ने स्पष्ट किया कि पहलवाम हमले जैसी घटनाओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि आपको जमीनी हकीकत को भी देखना होगा, आप पहलवाम में जो हुआ, उसे अनदेखा नहीं कर सकते.
पीठ ने केंद्र सरकार से इस याचिका पर जवाब पेश करने को कहा है. यह याचिका शिक्षाविद ज़हूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक ने दायर की है. अदालत ने मामले को आठ सप्ताह बाद फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राजनीतिक और प्रशासनिक फैसलों में कई पहलुओं पर विचार करना जरूरी होता है. याचिकाकर्ता भट की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह विषय संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में अनुच्छेद 370 को निरस्त रखने के अपने फैसले को बरकरार रखा था. पिछले साल भी शीर्ष अदालत में एक याचिका दाखिल हुई थी, जिसमें केंद्र को दो महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश देने की मांग की गई थी. हालांकि, अदालत ने उस समय केंद्र को समय देने का रुख अपनाया था.
जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद समाप्त कर दिया गया था और इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था. तब से राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग लगातार उठती रही है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताज़ा बयान में यह स्पष्ट कर दिया है कि सिर्फ कानूनी पहलू ही नहीं, बल्कि सुरक्षा और ज़मीनी परिस्थितियां भी इस निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी. पहलवाम जैसे आतंकी हमले इस संदर्भ में गंभीर चिंता का विषय हैं.