ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट पर बोले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, कहा-अब मथुरा और काशी बचा हुआ है...

Gyanvapi Mosque Case: जिला अदालत की तरफ से पिछले साल 21 जुलाई के दिए गए आदेश के बाद एएसआई ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण शुरू किया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर किया गया था या नहीं.

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हाइलाइट्स

  • ज्ञानवापी की सर्वे रिपोर्ट पर बोले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह
  • कहा-अब मथुरा और काशी दे दें ताकि कोई परेशानी नहीं हो

Gyanvapi Mosque Case: उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जारी विवाद के बीच भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) सर्वे रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम पक्ष को सौंप दी गई है. इसको लेकर हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने गुरुवार (25जनवरी) को दावा किया था कि एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वहां पर पहले से मौजूद मंदिर के अवशेषों पर किया गया था. इस बीच आज (26 जनवरी)पूरे मामले पर  केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का भी बयान सामने आया है. 

इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह ने कहा, ''देश के तमाम सनातनियों के लिए अयोध्या में राम भगवान का मंदिर बनना सबसे बड़ी राहत की बात है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और और कोर्ट के चलते हो सका है. भारत का सनातनी जाग गया है. अब मथुरा और काशी बचा हुआ है. मथुरा और काशी दे दें ताकि कोई परेशानी नहीं हो. एएसआई ने सारे प्रमाण दे दिए हैं.''

बता दें, कि हाल ही में वाराणसी की जिला कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की सर्वे रिपोर्ट सभी पक्षकारों को देने का आदेश दिया था. 

एएसआई द्वारा क्यों किया गया सर्वे? 

जिला अदालत की तरफ से पिछले साल 21 जुलाई के दिए गए आदेश के बाद एएसआई ने काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण शुरू किया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर की पहले से मौजूद संरचना पर किया गया था या नहीं. 

हिंदू याचिकाकर्ताओं ने क्या किया दावा ? 

हिंदू याचिकाकर्ताओं की तरफ से यह दावा करने के बाद कि 17वीं सदी की मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद मंदिर के ऊपर किया गया था, जिसके बाद कोर्ट ने सर्वेक्षण का आदेश दिया था. बता दें कि एएसआई ने 18 दिसंबर को सीलबंद लिफाफे में अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट जिला अदालत को सौंपी थी. इस दौरान उसने 3 जनवरी को इलाहाबाद हाई कोर्ट के 19 दिसंबर के फैसले का हवाला देते हुए अदालत से अपनी ज्ञानवापी परिसर सर्वेक्षण रिपोर्ट को कम से कम चार सप्ताह तक सार्वजनिक नहीं करने का आग्रह किया था.