Indus Waters Treaty: जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के एक दिन बाद सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक हुई, जिसमें भारत सराकर की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ कई सख्त एक्शन लिए गए. जिसमें से एक दशकों पुरानी सिंधु जल संधि को तत्काल और अनिश्चित काल के लिए निलंबित करना था.
सिंधु जल संधि पर के भारत की तरफ से अचानक लगाए गए रोक के कारण पाकिस्तान की समस्या बढ़ सकती है. तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है ये संधि और इससे पाकिस्तान पर कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है. इसके लिए सबसे पहले हमें इस संधि को समझना होगा.
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को 1960 में तय किया गया था. इस संधि में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किए गए थे. सबसे पहले आपको एक बात फिर से याद दिला दें कि दोनों देशों के बीच तीन बड़े युद्ध हुए हैं. जिसमें 1965, 1971 और 1999 का युद्ध शामिल है. लेकिन इन तीनों युद्दों के बाद अब इस जल संधि को अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर दिया गया है. इस संधि पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने कराची में इस पर हस्ताक्षर किए थे.
इस संधि के मुताबिक भारत की तीन पूर्वी नदियों (ब्यास, रावी और सतलुज) के जल पर नियंत्रण देती है. वहीं संधि के तहत पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के जल का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया है. पाकिस्तान नियंत्रित नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह 41 बिलियन m3 और पश्चिमी नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह 99 बिलियन m3 है. जबकि भारत में स्थित सिंधु नदी प्रणाली द्वारा ले जाए जाने वाले कुल जल का लगभग 30% भारत को प्राप्त हुआ, जबकि शेष 70% पाकिस्तान को मिला. प्रमुख संधि की प्रस्तावना सद्भावना, मित्रता और सहयोग की भावना से सिंधु नदी प्रणाली से इष्टतम जल उपयोग के लिए प्रत्येक देश के अधिकारों और दायित्वों को मान्यता देती है. अब इस संधि को निलंबित किए जाने से पाकिस्तान की परेशानी बढ़ सकती है.