Sheikh Hasina: ढाका अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के हालिया फैसले ने बांग्लादेश की अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है. फैसले ने जहां अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइज़र मोहम्मद यूनुस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, वहीं हसीना इसे अपने लिए अवसर में बदलने की रणनीति पर काम कर रही हैं. दिल्ली में प्रवास के दौरान वह लगातार मीडिया से संवाद कर रही हैं और अपने समर्थकों को सक्रिय रखने की कोशिशों में जुटी हैं.
समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन शुरू
फैसले के बाद हसीना का पहला लक्ष्य अपने जनाधार को सड़कों पर लाना है. आवामी लीग ने बांग्लादेश में 12 दिनों का बंद बुलाया है, जिसके तहत पार्टी समर्थकों को शांतिपूर्ण तरीके से विरोध दर्ज कराने के निर्देश दिए गए हैं. इस बंद का उद्देश्य यह संदेश देना है कि बांग्लादेश की राजनीति में शेख हसीना और उनकी पार्टी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
हसीना लगातार इंटरव्यू देकर यह धारणा बना रही हैं कि उनके खिलाफ आई मुश्किलें केवल राजनीतिक साज़िश का हिस्सा हैं. उनका कहना है कि अगर आवामी लीग को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर रखा गया तो बांग्लादेश की लोकतंत्र पर भारी आंच आएगी.
ब्रिटेन में बैठे बेटे जॉय की एंट्री
इसी बीच ब्रिटेन में मौजूद उनके बेटे और माने जाने वाले उत्तराधिकारी साजिब वाजेद जॉय भी सक्रिय हो गए हैं. जॉय ने एक इंटरव्यू में यूनुस सरकार को कड़ा संदेश देते हुए कहा कि आवामी लीग पर प्रतिबंध जारी रखना देश के लिए ‘खतरनाक परिणाम’ ला सकता है. उनका दावा है कि आवामी लीग का जनाधार मजबूत है और चुनावी प्रक्रिया से उसे बाहर रखना जनता के निर्णय का अपमान है. जॉय की कोशिश पार्टी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से प्रस्तुत करने और समर्थकों में उत्साह बनाए रखने की है.
हसीना का बदलता रुख
दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट के फैसले के बाद हसीना ने अपने राजनीतिक तेवर और बयानों में बड़ा बदलाव किया है. जहां पहले वह तख्तापलट के लिए अमेरिका को सीधे ज़िम्मेदार ठहराती थीं, वहीं अब उन्होंने स्वर काफी नरम कर लिया है. सेंट मार्टिन द्वीप को लेकर भी वह कोई बयान देने से बच रही हैं. उनकी नई रणनीति मानवाधिकार मुद्दों पर फोकस करने की है. वही मुद्दा, जिस पर कभी विपक्ष उन्हें कठघरे में खड़ा करता था.
विश्लेषकों का मानना है कि हसीना जानती हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहानुभूति हासिल किए बिना वापसी मुश्किल है. इसलिए वह अपने रुख में नरमी ला रही हैं और लोकतंत्र व मानवाधिकार की दुहाई देकर खुद को पीड़ित नेता के रूप में पेश कर रही हैं.
2026 चुनाव से पहले राजनीति में हलचल
बांग्लादेश में 2026 के फरवरी में आम चुनाव प्रस्तावित हैं, जिनके साथ ही यूनुस सरकार जनमत संग्रह भी कराने की तैयारी कर रही है. इन दोनों प्रक्रियाओं से आवामी लीग को बाहर रखा गया है. हसीना और उनकी पार्टी को डर है कि अगर अभी सक्रियता नहीं दिखाई गई, तो आने वाले समय में उनके खिलाफ और भी कठोर कदम उठाए जा सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह दौर हसीना और आवामी लीग के लिए अस्तित्व की लड़ाई जैसा है. अभी सवाल यह है कि क्या कोर्ट के फैसले को हसीना सचमुच सियासी संजीवनी में बदल पाएंगी या यह विरोध-प्रदर्शन केवल प्रतीकात्मक रह जाएंगे. आने वाले सप्ताह बांग्लादेश की राजनीति के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं.