Israel-Iran Conflict: इजरायल और ईरान के युद्ध के बीच आम नागरिकों की समस्या और भी ज्यादा बढ़ती जा रही है. इजरायल की ओर से गुरुवार को दावा किया गया कि ईरान की ओर से दागी गई एक मिसाइल ने कई छोटे बमों को बिखेर दिया.
ईरान और इजरायल के बीच युद्ध का आज आठवां दिन है. इतने दिनों में पहली क्लस्टर बॉम्बिंग की रिपोर्ट दर्ज की गई. इस हमले से नागरिकों को ज्यादा नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है. इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने गुरुवार को ईरान सुप्रीम लीडर को चेतावनी देते हुए कहा था कि वे ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकते हैं.
दोनों देशों के बीच चल रहे इस तनाव के समय पर क्लस्टर बॉम्ब का मतलब समझना काफी जरुरी है. जिन्हें नहीं पता हो उन्हें बता दें कि कलस्टर बम हथियारों का हिस्सा होता है. यह एक तरह का खोल होता है, जिसे किसी क्षेत्र को बर्बाद करने के मंशा से इस्तेमाल किया जाता है. क्लस्टर बॉम्ब को आप चाहें तो हवा से भी नीचे गिरा सकते हैं या फिर जमीन से भी दाग सकते हैं.
इन बॉम्ब को फटने के लिए किसी चीज की जरूरत नहीं होती है, यह हवा में ही फट जाता है और फटने के साथ कई सारे छोटे बम को छोड़ता है. छोटे बमों की संख्या सैंकड़ों में भी हो सकती है और यह बम कई फुटबॉल के मैदान जितने बड़े क्षेत्र तक पहुंच सकता है. कुल मिलाकर यह एक ऐसे प्रकार की बॉम्बिंग को कहते हैं, जिसमें एक साथ कई धमाके होते हैं. हालांकि इस तरह बॉम्बिंग से ज्यादा भारी नुकसान नहीं होता, लेकिन छोटे-छोटे कई नुकसान होते हैं. जो कि आम नागरिकों के लिए काफी नुकसान देह हो सकता है.
क्लस्टर बम की एक और खासियत होती है कि इसमें मौजूद कई बॉम्ब काफी दिनों तक नहीं फटते. इसके बाद बिना किसी मेहनत के कभी भी अचानक विस्फोट हो जाते हैं. इस तरह से आम नागरिकों के ऊपर खतरा बना रहता है. इस तरह के हमले में अनपेक्षित लक्ष्यों को साधा जाता है. जिससे कई लोग घायल हो सकते हैं और कई की जान भी जा सकती है. हालांकि इस तरह बॉम्बिंग आम नहीं है. लेकिन ईरान ने ऐसा कर के इजरायल के लिए नई मुसीबत खड़ा कर दिया है. इस तरह की बॉम्बिंग पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के समय इस्तेमाल किया गया था.
क्लस्टर बम अपने लक्ष्य में सटीक नहीं होते हैं और उनकी सटीकता मौसम और अन्य पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित हो सकती है. इसलिए इसे लक्षित सैन्य उद्देश्य के बाहर के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. क्लस्टर बमों के उपयोग को खत्म करने के लिए 2008 में एक कन्वेंशन की स्थापना की गई थी. जिसमें मौजूदा भंडारों को नष्ट करने पर सहमति बनी थी. इस प्रस्ताव पर 123 देशों ने हस्ताक्षर किए थे. हालांकि रूस, यूक्रेन और अमेरिका समेत कई देशों ने इसपर सहमति नहीं जताई थी.