Iran US Conflict: ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने डोनाल्ड ट्रंप के दावे को खारिज कर दिया. जिसमें उन्होंने ईरान के साथ वार्ता की बात कही थी. सरकारी टीवी पर साक्षात्कार में अराघची ने कहा कि ईरान की अमेरिका से मिलने की कोई योजना नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि तेहरान अभी इस बात का मूल्यांकन कर रहा है कि वार्ता उसके हितों के लिए फायदेमंद होगी या नहीं.
ईरान और इजरायल के बीच 12 दिनों तक चले युद्ध ने दोनों देशों को भारी नुकसान पहुंचाया. इस दौरान दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर मिसाइलें दागीं. ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिका और इजरायल के हमलों ने स्थिति को और जटिल कर दिया. अराघची ने स्वीकार किया कि इन हमलों से ईरान को काफी नुकसान हुआ. हालांकि, ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम नागरिक हितों के लिए है, जबकि अमेरिका इसे हथियार बनाने की कोशिश मानता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ईरान-इजरायल युद्ध को रोकने की कोशिश की. उन्होंने कतर की मध्यस्थता से युद्धविराम की घोषणा की. लेकिन अगले ही दिन अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर हमला कर दिया. जवाब में ईरान ने कतर में अमेरिका के अल-उदीद एयरबेस पर मिसाइलें दागीं. बाद में ट्रंप ने फिर युद्धविराम का ऐलान किया, जिसे ईरान ने पहले खारिज किया, लेकिन बाद में मान लिया. हेग में नाटो शिखर सम्मेलन में ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका और ईरान अगले सप्ताह वार्ता करेंगे. उन्होंने पेंटागन के हमलों को सफल बताया. लेकिन व्हाइट हाउस ने गुरुवार को इस बयान को वापस ले लिया. अराघची ने कहा कि अमेरिका ने हमले कर अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया. उन्होंने इसे अपमानजनक और खतरनाक कदम बताया.
युद्धविराम के बावजूद ईरान, इजरायल और अमेरिका के बीच तनाव बना हुआ है. ईरान ने कहा कि वह अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए हर विकल्प पर विचार करेगा. रूस और चीन जैसे देशों ने अमेरिकी हमलों की निंदा की है. भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी ईरान के राष्ट्रपति से बात कर तनाव कम करने की अपील की. यदि यह युद्ध लंबा चलता, तो भारत के व्यापार पर असर पड़ता. ईरान से भारत चावल, चाय और अन्य सामान निर्यात करता है. होर्मुज स्ट्रेट बंद होने से तेल और गैस की आपूर्ति प्रभावित हो सकती थी. भारत ने कूटनीतिक स्तर पर शांति की वकालत की है.