Aditya L1: इसरो एक बार फिर से भारत का इतिहास रचने वाला है. चांद पर उतरने के बाद भारत एक और इतिहास रचने के बेहद करीब है. सूर्य मिशन पर निकला भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का आदित्य एल-1 शनिवार शाम चार बजे अपनी मंजिल लैग्रेंज फ्वाइंट -1(एल1) पर पहुंचने के साथ अंतिम कभा में स्थापित हो जाएगा. बताया जा रहा है कि आदित्य 2 वर्ष तक सूर्य का अध्ययन करेगा और महत्वपूर्ण आंकड़े जुटाएगा. भारत के इस पहले सूर्य अध्ययन अभियान को इसरो ने 2 सिंतबर को लॉन्च किया था.
इसरो के इस अभियान को पूरी दुनिया में उत्सुकता से देखा जा रहा है क्योंकि इसके सात पेलोड सौर घटनाओं का व्यापक अध्ययन करेंगे और वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय को डाटा मुहैया कराएंगे. जिससे सभी सूर्य के विकिरण, कणों और चंबुकीय क्षेत्रों का अध्ययन कर पाएंगे. अंतरिक्ष यान में एक कोरोनोग्राफ है जो वैज्ञानिकों को सूर्य की सतह के बहुत करीब देखने और नासा व यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला मिशन के डाटा तो पूरक डाटा मुहैया कराएगा क्योंकि, आदित्य एल-1 अपनी स्थिति में स्थित एकमात्र वेधशाला है.
शुक्रवार को आदित्य एल-1 अंतरिक्ष में सफर करते हुए 126 दिन पूरे हो गए. अपनी यात्रा शुरू करने के 16 दिन बाद यात्री 18 सितंबर से आदित्य ने वैज्ञानिक डाटा एकत्र करना और सूर्य की इमेजिंग शुरू कर दी थी. वैज्ञानिकों को अब तक एल-1 से सौर ज्वालाओं के हाई-एनर्जी एक्स-रे, फुल सोलर डिस्क इमेज मिल चुके हैं पीएपीए और एएसपीईएक्स के सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर सहित चार उपकरण फिलहाल सक्रिया हैं. और अच्छी तरह से काम कर रहे हैं. हेलो आर्बिट में पहुंचने के बाद सूईट पेलोड सबसे पहले सक्रिय होगा.
आदित्य-L1 को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर एल1 सन- अर्थ लैग्रेंजियन प्वाइंट पर सौर तूफानों की स्थिति जानने के लिए डिजाइन किया गया है. इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गातिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूंकप या कोरोनल मास इजेक्शन, सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं पर नजर रखना है. आदित्य एल-1 पृथ्वी के करीब अतंरिक्ष में मौसमी संबंधी समस्याओँ को समझाने में मदद करेगा.