Dry Eye: भारत में तेजी से डिजिटलीकरण हो रहा है. जिसका असर लोगों के आंखों पर भी पड़ने लगा है. डिजिटल थकान की वजह से डिजिटल आई स्ट्रेन, जिसे कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम (CVS) भी कहते हैं, आज एक आम समस्या है. इस बिमारी में स्मार्टफोन, टैबलेट और कंप्यूटर पर लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखें सूख जाती हैं.
डॉक्टर का मानना है कि कम पलकें झपकने और आंसुओं के वाष्पीकरण से यह परेशानी बढ़ती है. कोविड-19 के बाद ऑनलाइन काम और पढ़ाई ने इस समस्या को और गंभीर किया है. डिजिटल आई स्ट्रेन के लक्षणों में आंखों में जलन, थकान, सूखापन, धुंधली दृष्टि और सिरदर्द शामिल हैं. ये लक्षण रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं.
स्क्रीन पर ध्यान देने से लोग कम पलकें झपकाते हैं. सामान्यतः हम हर मिनट 15-20 बार पलकें झपकाते हैं, लेकिन स्क्रीन देखते समय यह दर घट जाती है. इससे आंसुओं की परत टूटती है और आंखें सूखने लगती हैं. कम पलकें झपकने से आंसुओं का वाष्पीकरण बढ़ता है, जिससे जलन होती है. सूखी आंखें और डिजिटल आई स्ट्रेन काम की उत्पादकता को कम करते हैं. यह फोकस को प्रभावित करता है. गंभीर मामलों में दर्द बढ़ सकता है. इससे जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. यह समस्या स्वास्थ्य सेवाओं पर आर्थिक बोझ भी डाल रही है.
कुछ आसान उपाय डिजिटल आई स्ट्रेन से बचा सकते हैं. 20-20-20 नियम अपनाएं इसका मतलब है कि हर 20 मिनट में 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें. नियमित रूप से पलकें झपकाने का अभ्यास करें. कृत्रिम आंसू (आई ड्रॉप) का उपयोग आंखों को नम रखता है. नीली रोशनी से बचने के लिए ब्लू लाइट फिल्टर चश्मे या स्क्रीन सेटिंग्स बदलें. इसके अलावा स्क्रीन की चमक को आसपास के प्रकाश के अनुसार समायोजित करें. चमकदार रोशनी या रिफ्लेक्शन से बचें. इससे आंखों पर दबाव कम होता है. डिजिटल दुनिया में स्क्रीन टाइम कम करना मुश्किल है. लेकिन छोटे-छोटे बदलाव आंखों को स्वस्थ रख सकते हैं. डिजिटल आई स्ट्रेन एक बढ़ती समस्या है. जागरूकता और सही उपाय इसे नियंत्रित कर सकते हैं.