World IVF Day: दंपति करियर, वित्तीय स्थिरता और व्यक्तिगत लक्ष्यों को प्राथमिकता दे रहे हैं. लेकिन यह फैसला प्रजनन स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है. हालांकि बढ़ते तकनीक के साथ आज हमारे पास कई ऑप्शन हैं, जिसकी मदद से पेरेंट्स बनना आसान हो गया है. आइए आज इन तकनीक के बारे में जानते हैं और सही उम्र में इसकी अहमियत को समझते हैं.
डॉक्टर बताते हैं कि दंपति अब देर से शादी और बच्चे की योजना बनाते हैं. महिलाएं उच्च शिक्षा और नेतृत्व की भूमिकाओं में आगे हैं. वे माता-पिता बनने को स्थगित करना सामाजिक रूप से स्वीकार्य मानती हैं. ऐसे समय पर आज हमारे पर कई तरह के ऑप्शन भी है. आईवीएफ, आईयूआई, अंडा फ्रीजिंग जैसी तकनीकें दंपतियों को आत्मविश्वास देती हैं.
महिलाओं में 30 की उम्र के बाद अंडों की संख्या और गुणवत्ता घटती है. 35 के बाद यह और तेजी से गिरता है. कुछ महिलाओं में कम उम्र में रजोनिवृत्ति की समस्या भी बढ़ रही है. पुरुषों में भी शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता कम होती है. प्राकृतिक गर्भधारण मुश्किल हो सकता है. देर से गर्भधारण में कई जोखिम हैं. प्राकृतिक गर्भधारण कठिन हो सकता है. गर्भपात का खतरा बढ़ता है. आनुवंशिक असामान्यताएं भी संभव हैं. इन जोखिमों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. प्रजनन उपचार का तनाव, सामाजिक दबाव और असफल प्रयास मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. खासकर महिलाएं इससे ज्यादा प्रभावित होती हैं. समय पर प्रजनन जांच जरूरी है. यह तनाव को कम करता है.
डॉक्टर बताते हैं कि दंपतियों को 20 के अंत या 30 की शुरुआत में प्रजनन जांच करवानी चाहिए. यह उनके स्वास्थ्य की सही जानकारी देता है. एआरटी के फायदे-नुकसान समझना जरूरी है. स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं. नियमित व्यायाम, अच्छी नींद और पोषण प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं. इसके साथ पारिवारिक स्वास्थ्य इतिहास की जांच करें. अनियमित मासिक धर्म या पैल्विक दर्द जैसे लक्षणों को नजरअंदाज न करें. अगर 35 से अधिक उम्र की महिला एक साल तक गर्भधारण नहीं कर पाती, तो विशेषज्ञ से सलाह लें. देर से माता-पिता बनना व्यक्तिगत पसंद है. लेकिन इसे जागरूकता और योजना के साथ करना चाहिए. प्रजनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें. समय पर कदम उठाएं. यह भविष्य को सुरक्षित बनाएगा.