Bihar SIR: बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए आधार कार्ड को पहचान के दस्तावेज के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. आधार को 12वें दस्तावेज के तौर पर मान्यता दी गई है. यह फैसला जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत लिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि आधार कार्ड केवल पहचान स्थापित करने के लिए है. इसे भारतीय नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा. कोर्ट ने आधार अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं है. इसे इस तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता. इस फैसले से पहचान और नागरिकता के बीच कानूनी अंतर स्पष्ट हो गया है.
कोर्ट ने मतदाता पंजीकरण अधिकारियों को आधार कार्ड की सत्यता जांचने का अधिकार भी दिया है. जैसे अन्य दस्तावेजों की जांच होती है, वैसे ही आधार की प्रामाणिकता भी परखी जाएगी. कोर्ट ने कहा कि प्राधिकारी आधार कार्ड की वास्तविकता की पुष्टि कर सकते हैं. इसे नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं लिया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को इस फैसले को तुरंत लागू करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि आयोग को उसी दिन निर्देश जारी करने होंगे. ईसीआई ने कोर्ट में पुष्टि की कि वह कानूनी प्रावधानों के तहत आधार को मान्यता देगा. अब बिहार में निर्वाचन अधिकारियों को इस निर्देश को लागू करने के लिए औपचारिक आदेश मिलने की उम्मीद है.
बिहार में मतदाता सूची संशोधन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. कई लोग मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठा रहे थे. इस दौरान पहचान के दस्तावेजों की वैधता पर भी बहस हो रही थी. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस विवाद को सुलझाने में अहम कदम साबित हो सकता है. अब देखना यह है कि चुनाव आयोग इस निर्देश को कितनी तेजी से लागू करता है. बिहार के निर्वाचन अधिकारी जल्द ही इस दिशा में कदम उठाएंगे.