कैंटीन स्टाफ पर हमला करने के आरोप में संजय गायकवाड़ पर एक्शन, शिवसेना विधायक की बढी मुश्किलें

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कि पुलिस को औपचारिक शिकायत की जरूरत नहीं. वह स्वतंत्र रूप से जांच कर सकती है और कार्रवाई करेगी. यह बयान गृह राज्य मंत्री के उस दावे के विपरीत है, जिसमें उन्होंने कहा था कि लिखित शिकायत के बिना कार्रवाई संभव नहीं है.

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Courtesy: Social Media

Sanjay Gaikwad: शिवसेना (शिंदे गुट) के विधायक संजय गायकवाड़ सुर्खियों में है. मुंबई के चर्चगेट स्थित एमएलए हॉस्टल की कैंटीन में कर्मचारी से मारपीट और धमकाने के आरोप में उनके खिलाफ गैर-संज्ञेय (एनसी) मामला दर्ज किया गया है. मरीन ड्राइव पुलिस ने एक वायरल वीडियो के आधार पर स्वतः कार्रवाई शुरू की. वीडियो में गायकवाड़ कैंटीन कर्मचारी पर बासी और खराब खाने की शिकायत को लेकर गुस्सा करते दिख रहे हैं. यह घटना राज्य विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सामने आई, जिसके बाद भारी हंगामा मचा.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाया है. उन्होंने कहा कि पुलिस को औपचारिक शिकायत की जरूरत नहीं. वह स्वतंत्र रूप से जांच कर सकती है और कार्रवाई करेगी. यह बयान गृह राज्य मंत्री के उस दावे के विपरीत है, जिसमें उन्होंने कहा था कि लिखित शिकायत के बिना कार्रवाई संभव नहीं है. फडणवीस के बयान से साफ है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है. जनता और विपक्ष ने भी गायकवाड़ के व्यवहार की कड़ी निंदा की है.

एफडीए ने रद्द किया कैंटीन का लाइसेंस  

इस घटना के बाद महाराष्ट्र खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने त्वरित कार्रवाई की. एमएलए हॉस्टल की कैंटीन चलाने वाली अजंता कैटरर्स का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया. एफडीए ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के उल्लंघन का हवाला दिया. मंगलवार को हुए औचक निरीक्षण में दाल, पनीर, शेजवान चटनी और पुराने तेल के नमूने लिए गए. जांच के परिणाम आने तक अजंता कैटरर्स को कैंटीन बंद रखने का आदेश दिया गया है. संजय गायकवाड़ ने दावा किया कि उनका गुस्सा खराब और बासी खाने की शिकायतों पर था, जो कई विधायकों को परोसा गया. हालांकि, उनके हिंसक व्यवहार की चौतरफा आलोचना हो रही है. 

आंतरिक विधायी समितियों की जिम्मेदारी 

पीड़ित कर्मचारी को उसके गृहनगर भेज दिया गया है. अजंता कैटरर्स ने कहा कि इस तरह के मामलों से निपटने की जिम्मेदारी आंतरिक विधायी समितियों की है. लेकिन जनता का गुस्सा और सोशल मीडिया पर आलोचना थमने का नाम नहीं ले रही. यह घटना न केवल गायकवाड़ के व्यवहार पर सवाल उठाती है, बल्कि विधायकों की सुविधाओं की गुणवत्ता पर भी ध्यान खींचती है. जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे संयम और जवाबदेही का परिचय दें. इस मामले ने एक बार फिर नेताओं के आचरण और सार्वजनिक सुविधाओं की गुणवत्ता पर बहस छेड़ दी है. पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई से साफ है कि गलत व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 

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