बेटे की मौत के 14 साल बाद बूढ़ी मां को मिला इंसाफ़

बुजुर्ग महिला बेटे की मौत के 14 साल बाद तक लड़ती रही कानूनी लड़ाई, आखिरकार हुई सफल

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कहते हैं कि संघर्ष का रास्ता कठिन भले हो लेकिन इस रास्ते पर सफलता निश्चित ही होती है. ऐसी ही संघर्ष की एक कहानी है हरदोई की एक बुजुर्ग महिला की. बुढ़ापे में घर के कमाऊ बेटे की सड़क हादसे में मौत के बाद उन्होंने 14 सालों तक मुआवजे के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी. यहां तक कि पति की मौत का दुख भी उन्हें तोड़ नहीं पाया और करीब डेढ़ दशक की कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार बुजुर्ग महिला अपने बेटे की मौत का मुआवजा पाने में कामयाब हो गईं.

लगभग 100 तारीखों पर कोर्ट के चक्कर काटे
अपने बेटे की मौत के मुआवजे के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही बुजुर्ग महिला 14 सालों में करीब 100 तारीखों पर अदालत गईं. दरअसल ये कहानी है हरदोई के जिगनिया खुर्द गांव के मजरे कोटरा की. यहां लक्ष्मी पुरवा के रहने वाले विपिन कुमार ट्रक चलाने का काम करते थे. इसी दौरान 3 जुलाई 2009 को एक हादसे में विपिन की मौत हो गई.

विपिन की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उनके बूढ़े पिता रामकुमार पर आ गई, लेकिन बेटे की मौत का सदमा बूढ़े पिता सह नहीं पाए और खुद बीमार पड़ गए. पहले से ही बदहाली का सामना कर रहे परिवार को शहर में अपना मकान तक बेचना पड़ा. इसके बाद वो अपने ससुराल आ गए और रामकुमार और उनका एक बेटा मजदूरी करके गुजर-बसर करने लगें.

आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण रामकुमार ने बीमा कंपनी से मुआवजे की मांग की, लेकिन बीमा कंपनी ने मुआवजा देने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. जिसके बाद उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया अपनाते हुए कर्मकार प्रतिकार अधिनियम के तहत डीएम के न्यायलय में बीमा कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया.

सालों-साल काटते रहे अदालत के चक्कर
मुकदमा दायर करने के बाद भी रामकुमार और उनकी पत्नी डीएम की अदालत के चक्कर ही काटते रहे. दोनों वृद्ध दंपत्ति हर सुनवाई के लिए अदालत में पहुंचते थे लेकिन सुनवाई के बाद कोई नतीजा नहीं निकलता था. इसी दौरान करीब तीन साल पहले रामकुमार की भी मौत हो गई.

इसके बाद भी बुजुर्ग महिला ने हार नहीं मानी और वो लगातार केस की सुनवाई पर आती रही. कभी भूखे पेट तो कभी-कभी कई किलोमीटर पैदल चलकर वो अदालत पहुंचती रही.

इसी तरह संघर्ष करते हुए करीब डेढ़ दशक बीत गए लेकिन सुनवाई नहीं हुई लेकिन जब सरकार की ओर से मुकदमों को प्राथमिकता से निपटाए जाने का आदेश जारी हुआ. तब जाकर बुजुर्ग महिला को इंसाफ मिला. दरअसल हरदोई के डीएम ने इस पूरे प्रकरण में दखल दिया और उन्होंने दोनों पक्ष के दलीलों को सुनने के बाद नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को 6 प्रतिशत ब्याज समेत मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया. इसके बाद बीमा कम्पनी ने करीब 14 साल बाद मुआवजे की 4 लाख 16 हजार 167 रुपए का भुगतान किया और इस तरह रामदेवी अपने कड़े संघर्ष के बाद सफलता पाने में कामयाब रही.